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शरीर को जरूरत के हिसाब से आहार न मिलना ही कुपोषण है -डा. प्रशांत कुमार सिंह

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अपूर्व हॉस्पिटल एवं रिसर्च सेंटर पर नवजात एवं बाल रोग विशेषज्ञ से बच्चों के कुपोषण पर हुई बातचीत

चिकित्सक बोले, कुपोषण से समाज व देश का विकास लंगड़ा हो जाता है

बलिया। “कुपोषण” एक घातक बीमारी है। यह समाज व राष्ट्र के लिए बड़ी समस्या भी है। सरकार इसके लिए विभिन्न योजनाएं जरूर चला रही है। देखा जाए तो प्रदेश में कुपोषित बच्चों के लिए सरकार द्वारा कई महत्वपूर्ण योजनाएं चलाई जा रहीं है। जिला चिकित्सालय में एनआरसी भी स्थापित किए हैं।

क्टर प्रशांत कुमार बताते हैं कि बच्चों में कुपोषण का पाया जाना काफी गंभीर है। इस पर जितनी बात की जाए कम है, क्योंकि देश के भावी भविष्य के कुपोषित होने से परिवार समाज और देश का विकास ना केवल अवरूद्ध होता है, बल्कि लंगड़ा हो जाता है। आंकड़ों पर गौर करें तो बच्चों में कुपोषण के केस उत्तर प्रदेश व बिहार में अत्यधिक मिल रहे हैं।


इस संबंध में अपूर्व हॉस्पिटल एवं रिसर्च सेंटर शंकरपुर मझौली बलिया में कार्यरत नवजात एवं बाल रोग विशेषज्ञ डॉ. प्रशांत कुमार सिंह से हुई विशेष बातचीत के दौरान बताया कि अकेले उत्तर प्रदेश में 43% बच्चे कुपोषण के शिकार हैं। कुपोषण का अर्थ शरीर को जरूरत के हिसाब से भोजन यानि आहार का कम मिलना है। ऐसे पोषक तत्व जिससे शरीर का विकास होता है, उनकी मात्रा का कम होना।


डा. प्रशांत कुमार बताते हैं कि कुपोषण दो प्रकार का होता है एक कम आहार यानी कि भोजन असंतुलित होना, दूसरा अत्यधिक आहार यानी जरूरत से अधिक भोजन का मिलना। देखा जाए तो बच्चों के विकास के लिए शरीर में प्रोटीन की मात्रा सही होना आवश्यक है। इसके साथ ही जिंक व आयरन आदि की भी जरूरत पड़ती है। अगर आहार में यह शामिल नहीं है और उन्हें भरपूर मात्रा में प्रोटीन, आयरन व जिंक नहीं मिल रहा है, तो बच्चों में कुपोषण का होना स्वाभाविक है।


इस संबंध में डा. प्रशांत कुमार सिंह ने बताया कि अगर बच्चे कुपोषित हैं तो पहले बीमारी का पता लगाया जाता है। आखिरकार बच्चा किन कारणों से कुपोषण का शिकार हुआ है ? फिर उनका इलाज करते हैं। डब्ल्यूएचओ एवं भारत सरकार द्वारा ऐसे बच्चों को डाइट मुहैया कराया जाता है। जिससे बच्चे कुपोषण से बाहर निकल सकें। इसके आलावा बच्चों को दवा के साथ विटामिन एवं अन्य जरूरी सप्लीमेंट दिए जाते हैं, जिससे बच्चे जल्द से जल्द ठीक हो सकें।

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