तापमान 50 मेगावाट से अधिक हो तो सिकुड़ जाती है रेटिना- डा. बीपी सिंह
बलिया। हीट-वेव से आंखों पर बुरा प्रभाव पड़ता है। आंखों के पर्दे एवं रेटिना लू से सिकुड़ते हैं। यदि मौसम का तापमान 50 मेगावाट से अधिक हो तो वहां आंखों के लिए खतरनाक है। ऐसे में रेटिना सफेद हो जाती है और आंखों में इंफेक्शन हो जाता है।
आंख रोग विशेषज्ञ डा. बीपी सिंह के मुताबिक गर्मी के दिनों में आंखों को ठंडा पानी से धोए। शरीर व आंखों को ढककर लू में बाहर निकलें। हीटवेव से खुद को तथा आंखों को सुरक्षित रखने के लिए जरूरी हो तभी घर से बाहर जाएं। क्योंकि इन दिनों में आंखों में इंफेक्शन तेजी से फैलता है। जिसका समय से इलाज न कराने पर आंखों की रोशनी भी प्रभावित होती है। आंखों में इन्फेक्शन की बात करें तो गर्मी के दिनों में यह काफी प्रभावी होता है। यह तीन प्रकार का होता है। बैक्टीरियल इंफेक्शन, वायरल इंफेक्शन तथा फंगल इन्फेक्शन। अगर किसी कारणवश आंखों में चोट लग जाती है तो ऐसी स्थिति में फंगल एवं वायरल इंफेक्शन होने का खतरा रहता है। इस मौसम में आंखों में जलन, आंखों में दर्द एवं लगातार पानी गिरने पर तत्काल चिकित्सक से संपर्क कर उचित उपचार कराना चाहिए।
ग्लूकोमा एक खतरनाक बीमारी, चली जाती है आंखों की रोशनी..
जिला अस्पताल में तैनात आंख रोग विशेषज्ञ डॉक्टर बीपी सिंह ने कहा कि ग्लूकोमा एक खतरनाक बीमारी है, जो आंखों की रोशनी को धीरे-धीरे खत्म कर देती है। ग्लूकोमा के प्रारंभिक लक्षण आंखों से कम दिखाई देना या आंखों में तेज दर्द कि होना पाया जाता है। उन्होंने बताया कि ग्लूकोमा दो तरह की होती है। एक आंखों में दर्द के साथ रोशनी का काम होना और दूसरा आंखों में बिना दर्द के रोशनी का गायब होना। मरीज की आंखों की रोशनी धीरे-धीरे कम होने लगती है और उसे पता तक नहीं चलता। वह सोचता है उम्र के हिसाब से रोशनी कम हो रही है। इसके बाद वह लापरवाह हो जाता हैं और ग्लूकोमा अंततः आंखों की रोशनी खत्म कर देता है। ऐसे में मरीज को सजग एवं सतर्क रहना चाहिए और समय रहते जांच व चिकित्सक से राय लेनी चाहिए।
उन्होंने बताया कि हम प्रत्येक रोगी को सलाह देते हैं कि 40 साल की उम्र के बाद जब वह आंखों की रोशनी की जांच कराए, तो आंखों का टेंशन भी जरूर जांच कर ले। ताकि यह पता चल सके की आंखों में किस तरह की बीमारी पनप रही है। ग्लूकोमा रोग से मरीज को निजात दिलाने के लिए लेजर विधि से ऑपरेशन या एंटी ग्लूकोमा टैबलेट द्वारा मरीज को ठीक करने का प्रयास किया जाता है। इससे भी सुधार न होने पर अन्य ऑपरेशन किए जाते हैं।